संकट मोचन संगीत समारोह की पांचवें निशा की प्रस्तुतियां रही यादगार, पंडित हरिप्रसाद के बांसुरी ने किया भाव विभोर

संकटमोचन संगीत समारोह के शताब्दी वर्ष की पांचवीं निशा सदियों की बेहतरीन प्रस्तुतियों में दर्ज हो गई। 85 साल के पं. हरिप्रसाद की बांसुरी के जादू को महसूस करने के लिए बजरंगबली की अंगनाई श्रोताओं से ठसाठस भरी रही। प्रस्तुति से आधे घंटे पहले ग्रीन रूम में जब हरिप्रसाद चौरसिया पहुंचे तो उनकी हालत ठीक नहीं थी। मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी। पं. हरि प्रसाद चौरसिया के कांपते हाथों ने वेणु थाम अधरों से जब तान साधी तो लगा ही नहीं कि अभी कुछ देर पहले तक वे व्हीलचेयर पर थे। बांसुरी का वही माधुर्य, तान और सुरों की साधना का कण-कण ने अहसास किया। पांच दशकों से दर्शकों के सिर चढ़कर बोल रहा पं. हरिप्रसाद की बांसुरी का जादू फिर से जवां हो उठा। उनके शिष्य विवेक सोनार और शिष्या वैष्णवी ने बीच-बीच में हो रही रिक्तता को महसूस नहीं होने दिया। 

बांसुरी के उस्ताद की बांसुरी जब बजनी शुरू हुई तो मंदिर प्रांगण के कोने-कोने में रस माधुरी घुलने लगी। पं. हरिप्रसाद ने राग मारुविहाग को मुरली की तान पर सजाया। झप ताल और तीन ताल में गत वादन के साथ ही लयकारियों की मधुर बंदिशों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डेढ़ घंटे की अनवरत प्रस्तुति में पं. हरिप्रसाद के सुरों को देखकर हर किसी को भी यह अहसास हुआ कि हौसलों के आगे हर मुश्किल बस शब्द बनकर रह जाती हैं। विराम प्रस्तुति में पं. हरिप्रसाद ने जब बांसुरी पर ओम जय जगदीश हरे...की धुन बजाई तो पूरा प्रांगण भगवान विष्णु के रंग में रंग गया। श्रोता भी जय जगदीश हरे के गायन के साथ तालियो से संगत की। 

वही धारवाड़ से आए पं. वेंकटेश कुमार की दूसरी प्रस्तुति रही। उनके साथ तबले पर केशव जोशी और संवादिनी पर मोहित साहनी ने संगत की।तीसरी प्रस्तुति में दिल्ली से आए राजेंद्र गंगानी ने कथक की प्रस्तुति दी। उन्होंने अपनी भाव भंगिमाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। रामधुन पर आधारित नृत्य नाटिका भी दर्शकों के लिए यादगार रही। 

इसके बाद उन्होंने बजरंगबली की आराधना को जीवंत किया। तबले पर संजू सहाय, पखावज पर पं. फतेह सिंह गंगानी, गायन पर शमी उल्लाह खान, सितार पर ध्रुव नाथ मिश्र, बांसुरी पर अतुल शंकर ने संगत की। विराम प्रस्तुति के रूप में तबले की थाप पर प्रस्तुति से श्रोताओं को रोमांचित किया।

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