शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान बताया कि देश में गौ माता को राष्ट्रमाता के रूप में प्रतिष्ठित करने हेतु संतों ने आंदोलन आरंभ किया है इस आंदोलन में सहयोग देने के लिए अपनी ओर से 37 संतो को 37 प्रदेशों में गांव माता के इस आंदोलन में सहयोग के लिए भेजा है. उन्होंने कहा कि गाय भारतीय संस्कृति की आत्मा है। महाभारत के अनुसार सृष्टि की रचना के इच्छुक ब्रह्माजी ने सबसे पहले गौ-माता का निर्माण किया था, ताकि उनकी सृष्टि का पोषण हो सके। पोषण के अपने इसी गुण से गाय विश्व-माता कहलायी।
उन्होंने कहा कि पूर्व काल में राजा परीक्षित के सामने कलयुग ने डण्डे से गौ को मारना चाहा था, तब वे उसे मृत्युदण्ड दे रहे थे और आज के राजा गाय को काटते और करुण पुकार करते हुए देखकर भी कैसे चुप रह सकते हैं? गौ-माता की इसी करुण पुकार को सरकार के सामने, सरकार के सुनाने और सरकार द्वारा गौ-व्यथा को दूरकर उन्हें अभय और प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिए राष्ट्र-व्यापी गौ-प्रतिष्ठा आन्दोलन आरम्भ हुआ है, जिसको देश के चारों पीठों के शङ्कराचार्यों एवं अन्य विशिष्ट धर्माचार्यों के साथ-साथ कुछ प्रदेशों की विधान सभाओं का भी सहयोग मिल रहा है।गौ-प्रतिष्ठा आन्दोलन के अन्तर्गत वाराणसी से भारत के सभी प्रदेशों के लिए गौ-दूतों की नियुक्ति की जा रही है। ये गौदूत सन्त उन-उन प्रदेशों के गौ-भक्तों से मिलकर आन्दोलन को गति प्रदान करेंगे।