बाबा भोले की नगरी काशी अपनी अनूठी और विशिष्ट परंपराओ के लिए देश ही नही विदेश मे भी विख्यात है। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा है मसान की होली। जी हाँ काशी में मान्यता है की रंग भरी एकदशी पर बाबा माता गौरा का गौना कराते हैं और भक्त उन्हे अबीर गुलाल अर्पित कर उनसे आशीर्वाद लेते है और यही से काशी मे होली शुरू हो जाती है वही इसके अगले दिन बाबा अपने गणों के साथ महाश्मशान पर होली खेलते हैं और ये होली चिता भस्म की राख से खेली जाती है।
काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर आज 'मसाने की होली' खेली गयी। आग से धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म से यह दुर्लभ होली काशी की प्राचीन पहचान है। इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए देश-विदेश से लोग जुटते हैं। मणिकर्णिका घाट पर देव, गंधर्व, किन्नर, नगरवधुएं, भूत-प्रेत, पिशाच, बेताल मानों पूरा संसार ही उमड़ पड़ता है। खेले मसाने में होरी दिंगबर की पारंपरिक धुन पर हजारों काशीवासी इसके साक्षी बनते हैं। हर-हर, बम-बम का उद्घोष और महादेव के जप से पतितपावनी गंगा की लहरें भी बोल उठती हैं।
यह कार्यक्रम 11:30 बजे शुरू हुआ। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के ससुराल पक्ष के अनुरोध पर रंगभरी एकादशी के दिन उनके गौने में पिशाच, भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी - शाकिनी, औघड़, अघोरी, संन्यासी व अन्य गण शामिल नहीं हो पाए थे। जिनके साथ बाबा विश्वनाथ रंगभरी एकादशी की होली नहीं खेल पाते। लेकिन बाबा तो सभी के हैं, इसलिए गौना मे शामिल न होने वाले अपने गणों को निराश नहीं करते। इसलिए रंगभरी एकादशी के अगले दिन मणिकर्णिका पर गणों के साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं।
भूतभावन बाबा विश्वनाथ के बिना काशी की होली अधूरी है। आदिकाल से ही महदेव की नगरी में होली समेत किसी भी उत्सव की शुरुआत ‘बाबा’ से ही होती है। महाश्मशान की नगरी काशी में अन्नपूर्णा स्वरुप देवी गौरी के पहली बार काशी आगमन के साथ ही बनारस में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है। इसके अगले दिन मोक्ष स्थली मणिकर्णिका पर भस्म की होली खेली जाती है।मान्यता है कि काशी में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन बाबा विश्वनाथ शिवगणों के साथ होली खेलते हैं। इस दौरान भगवान भोलेनाथ का सबसे विरत और अड़भंगी स्वरुप दिखता है।बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में गुरुवार को मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के भस्म से होली खेली गयी। यहां भूत-पिशाच का वेश धारण किए लोगों में किसी ने चिताओं के भस्म से होली खेली, तो कोई डमरूओं के नाद पर थिरका। किसी ने चेहरे पर राख मला, तो कोई चिता भस्म से नहाया हुआ नजर आया। इस दौरान घाटों पर राख की मोटी परतें जमी रहीं। पूरा माहौल शिवमय रहा।
बाबा महाश्मसान समिति के अध्यक्ष और भस्म होली के आयोजक चैनू प्रसाद गुप्ता बताते हैं, सबसे पहले मणिकर्णिका घाट स्थित मसाननाथ मंदिर में गेरुवा लुंगी और गंजी धारण किए 21 अर्चकों ने बाबा मसाननाथ की आरती उतारी। 12 बजकर 5 मिनट पर आरती शुरू हुई, जो 45 मिनट तक चली।
इसके बाद बाबा मसाननाथ पर 30 किलो फल-फूल, माला और 21 किलोग्राम प्रसाद चढ़ाया गया। इसके बाद से लोग दौड़ते हुए चिताओं के पास पहुंच रहे हैं। फिर चिताओं की राख को अपने देह पर मलते हैं। इसके साथ ही अधजली चिताओं पर गंगाजल और थोड़ी-सी भस्म भी छिड़की जा रही है। जिससे उनकी आत्मा को जाते-जाते बाबा का प्रसाद मिल जाए।
चैनू प्रसाद ने बताया, ''साधु नरमुंड लगाकर तांडव करते हैं। वे कहां से आते हैं, क्या करते हैं और उनकी क्या मंशा है, यह मुझे नहीं पता। कुछ तो ओरिजिनल ही लगते हैं, तो वहीं कुछ कैरेक्टर प्ले करते नजर आते हैं। इन लोगों ने मसाने की सांस्कृतिक होली को भव्य बना दिया है।''ऐसा अंगूठा दृश्य देश दुनिया के किसी कोने में नहीं देखने को मिलता है जहां एक तरफ चिता जल रही होती है तो वहीं दूसरी तरफ लोग उत्सव मनाते हुए इस चिता भस्म से होली खेलते हैं। गुरुवार को सैकड़ो वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन हुआ जिसके लाखों लोग साक्षी बने।