रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान विशिष्टजनों ने भारत को 2047 तक विश्वगुरु बनाने का लिया संकल्प

देश के संतों, विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने आज यहां रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में एक स्वर से सशक्त, सनातन और महान लोकतांत्रिक भारत को 2047 तक हर हाल में विश्वगुरु बनाने का संकल्प लिया। काशी में इस अद्भुत और अत्यंत गंभीर विमर्श का आयोजन अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, श्री गंगा महासभा, श्री काशी विद्वतपरिषद और भारत संस्कृति न्यास ने संयुक्त रूप से किया था। 

कार्यक्रम की विषय प्रस्तावना संघ के प्रांत प्रचारक रमेश जी ने की। मुख्य अतिथि हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने सक्षम और सशक्त भारत के निर्माण में सभी को जुटने की अपील करते हुए कहा कि अखंड, शाश्वत, सनातन विश्वगुरु भारत की दमकती तस्वीर का रेखांकन हम कर पा रहे हैं। 

ऐसे महान भारत का चित्र जिसको रचने में भारत का नेतृत्व अपनी पूरी शक्ति और आस्थावान संकल्प के साथ जुटा हुआ है। विगत वर्षों में भारत को आत्मनिर्भरता , आर्थिक संपन्नता , सामरिक सुदृढ़ता और विश्व को सांस्कृतिक मानवीय नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता दी है।ऐसे में हम सभी भारतीयों का यह कर्तव्य बन जाता है कि अपनी इसी सनातन संस्कृति की अवधारणा को और अधिक सुदृढ़ कर अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों के साथ भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने में अपना योगदान अवश्य दें। 

सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि लोकतंत्र में भारत के प्रत्येक व्यक्ति के लिए संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है की राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होकर अपने नायक का चयन करे। मुख्य वक्ता स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती रहे। कार्यक्रम में स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती, स्वामी शंकर पुरी जी महन्त मन्दिर,अन्नपूर्णा, महामण्डलेश्वर सन्तोष दास सतुआ बाबा, प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी अध्यक्ष, श्रीकाशी विद्वत् परिषद् ,महन्त बालकदास सहित हजारों की संख्या में संत और विद्वतजन उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत रामेश्वर मठ के वैदिक छात्र, राष्ट्र सूक्त का पाठ कर किए। श्री काशी विश्वनाथ धाम के पण्डित श्रीकान्त मिश्र ने पौराणिक मंगलाचरण किया। कार्यक्रम की प्रस्तावना - डॉ० शुकदेव त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया। सञ्चालन प्रो० रामनारायण द्विवेदी और धन्यवाद ज्ञापन आचार्य गोविन्द शर्मा ने किया।


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