लक्ष्मीकुंड पर सोरहिया मेले की हुई शुरुआत, व्रत-अनुष्ठान के साथ महिलाएं 16 दिनों तक करेंगी माँ लक्ष्मी का विशेष पूजन

प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी लक्ष्मीकुंड स्थित लक्ष्मी मंदिर के आसपास आज से 16 दिवसीय सोरहिया मेला प्रारंभ हुआ। जिसमें मंदिर के आसपास बड़ी संख्या में माता लक्ष्मी सहित माला फूल नारियल चुनरी अन्य सामानों के सैकड़ो दुकानें सज गई है। वहीं माता लक्ष्मी के मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया भोर से ही बड़ी संख्या में व्रती महिलाओं के आने का क्रम जारी रहा माता की जय जयकार के बीच महिलाओं ने हाथों में माला फूल मां लक्ष्मी की मूर्ति लेकर कहानी किस्सा के साथ लक्ष्मीकुंड पोखरे पर पूजन अर्चन किया। 

सोराहिया माता का दर्शन कर अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना की। मंदिर के महंत ने बताया यह बड़ा सुखदाई क्षण है माता का यह व्रत और पूजन करने से परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती हैं। वही व्रती महिलाओं ने भी बताया की इस पूजन को करने से पति पुत्र का जीवन सुखमय रहता है परिवार में खुशहाली आती है लक्ष्मी माता के इस मूर्ति का हम लोग पूजन करते हैं इसके बाद एक साल घरों में रखते हैं दूसरे वर्ष विसर्जन करके दूसरी मूर्ति विराजमान करते हैं जिससे माता प्रसन्न होती है भक्तों पर अपनी कृपा करती हैं मन चाहा वरदान देती है।

बता दे कि सोरहिया का मेला लक्सा के लक्ष्मीकुंड पर लगता है। लक्ष्मीकुंड पर स्थित महालक्ष्मी मंदिर में 16 दिनों तक पूजा पाठ के लिए भीड़ उमड़ी रहती है। सुख, समृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए रखे जाने वाले इस व्रत के साथ लाखों लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है। इसकी गिनती भी काशी के लक्खा मेलों में होती है। यहां इस मेले में 16 अंक का विशेष महत्व है। सोरहिया का महाअनुष्ठान शुरू हो गया जो आश्विन कृष्ण अष्टमी जीवितपुत्रिका व्रत तक चलेगा। इसमें काशी के साथ ही आसपास के जिलों और दूरदराज की महिलाएं मां के दर्शनार्थ आती हैं। जीवित पुत्रिका का व्रत, महाअनुष्ठान व जियुतिया माता के दर्शन-पूजन का विशेष महात्व है। 

महालक्ष्मी के पूजन और व्रत का नाम सोरहिया इसीलिए पड़ा, क्योंकि यहां 16 अंक का विशेष महत्व है। 16 दिन के व्रत और पूजन में स्नान और 16 आचमन के बाद देवी विग्रह की 16 परिक्रमा की जाती है। माता को 16 चावल के दाने, 16 दूर्वा और 16 पल्लव अर्पित किए जाते हैं। व्रत के लिए 16 गांठ का धागा धारण किया जाता है। जो कथा सुनी जाती है, इसमें 16 शब्द होते हैं। 16वें दिन जीवित पुत्रिका या ज्यूतिया के निर्जला व्रत के साथ पूजन का समापन होता है।





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