काशी में छठ पूजन की धूम, अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को दिया गया अर्घ्य, गंगा घाट, सरोवर, तालाब और घरों की छत पर हुआ पूजन

भगवान भास्कर और छठी मैया के पूजन का महापर्व डाला छठ की बाबा भोले की नगरी काशी में धूम रही।छठ पूजा एक हिंदू त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड में मनाया जाता है। लेकिन छठ मैया की अपरंपार महिमा का गुणगान अब देश ही नहीं विदेशों में भी हो रहा है और मात्र उत्तर प्रदेश और बिहार में ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भक्त छठ माता की पूजा करते हैं। इस दिन भक्त छठी मईया और भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना और कठिन व्रत का पालन करते हैं। हिंदुओं के महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहारों में से एक माना जाने वाला छठ पूजा 4 दिनों तक चलता है।  

कार्तिक माह में आने वाले इस महापर्व की शुरुआत 5 नवंबर को नहाय-खाय से हुई। इसके अगले दिन यानी 6 नवंबर को खरना की परंपरा निभाई गई और 7 नवंबर यानि गुरुवार को संध्या अर्घ्य दिया गया डाला छठ एकमात्र ऐसा पर्व है जहां पर आस्था चलगामी भगवान सूर्य की आराधना की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा के दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं। व्रत रहते हुए छठ का प्रसाद तैयार करती हैं। फिर पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देती हैं। मान्यताओं के अनुसार छठ पूजा करने से संतान को दीर्घायु और सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कई महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भी छठ का व्रत रखती हैं।


ऐसी मान्यता है कि छठ मैया से मांगा गया हर वरदान मां जरुर पूरा करती है और यही कारण है कि दिनों दिन इस पर्व के उत्सव की मान्यता बढ़ती ही जा रही है। छठ पर्व के दृष्टिगत काशी के गंगा घाट कुंड सरोवर तालाब गुलज़ार रहे काफी संख्या में लोगों ने अपने घरों की छत पर भी पूजन किया। छठ माता के लोकप्रिय गीत जो हर किसी के मनभावन है उनसे पूरा माहौल भक्ति में हो गया। छठ माता के महिमा का बखान करते गीत गाते महिलाएं अपने परिवार संग दौरी में प्रसाद लिए पूजन स्थल पर पहुंची । इस प्रसाद की दौरी और गन्ने को घर के सदस्य अपने सिर पर लेकर चलते हैं। 

छठ माता का पूजन करना लोग बेहद ही सौभाग्य की बात मानते हैं ऐसे में उनसे जुड़े हर एक कार्य को लोग बड़े ही मनोभाव के साथ करते हैं। काशी के गंगा घाट का नजारा देखते ही बन रहा था जहां दूर-दूर तक व्रती महिलाएं अपनी बेदी पर दीपक जलाए छठ माता की पूजा आराधना करते नजर आए। छठ मैया की महिमा से जिन भी लोगों की मनोकामनाएं पूरी हुई वह ढोल नगाड़े के साथ घाटों पर पहुंचे। घाटों की आकर्षक साथ सजावट छठ माता के गूंजते गीत से पूरा माहौल अद्भुत रहा। 

सूर्यास्त से पहले ही व्रती महिलाएं जल के बीच खड़ी हो गई और पूजन प्रारंभ हुआ हाथों में सूप और उसमें सभी प्रसाद लिए आधे जल में खड़े होकर महिलाओं ने भक्ति भाव के साथ पूजन किया इसके बाद जैसे ही सूर्यास्त हुआ छठ मैया के गगन भेदी जयकारों के बीच अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का सिलसिला प्रारंभ हो गया। महिलाओं ने जल में परिक्रमा करते हुए अर्घ्य दिया। और इसी के साथ संध्या अर्घ्य की परंपरा संपन्न हुई। 

वही घाटों सरोवरों और तालाबों के पास सुरक्षा की दृष्टि से व्यापक प्रबंध रहे जल पुलिस और प्रशासन के लोग मुस्तैद रहे।

बरेका के सूर्य सरोवर पर भी हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी वृहद आयोजन किया गया दोपहर बाद से ही सूर्य सरोवर पर लोगों के पहुंचने का क्रम शुरू हो गया। ढोल नगाड़े की धुन के बीच लोक सरोवर के समीप पहुंचे और विधि विधान से छठ माता का पूजन अर्चन किया। 

परंपरागत रूप से सुहागिन महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर पहनाया। इस अवसर पर समिति की ओर से वृहद स्तर पर व्यवस्थाएं रही।

इस अवसर पर भव्य मंच बनाया गया जहां पर भगवान सूर्य की आकर्षक प्रतिमा विराजमान की गई जहां पूजन अर्चन हुआ वहीं सरोवर के किनारे काफी संख्या में व्रती महिलाएं पूजन हेतु पहुंची। 

आसमान में लालिमा आते ही हर और से छठ मैया के जयकारे लगे लगे और जैसे ही सूर्यास्त हुआ सभी महिलाओं ने पूजन करते हुए डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया।







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