सावन के प्रथम सोमवार पर काशी में आस्था और परंपरा का भव्य संगम देखने को मिला। बाबा विश्वनाथ मंदिर में करीब 50 हजार यादव बंधुओं ने मिलकर गंगाजल से जलाभिषेक किया। ये श्रद्धालु लगभग 2 किलोमीटर तक कंधे पर जल से भरे कलश लेकर मंदिर पहुंचे और "हर-हर महादेव" के जयघोष के साथ भोलेनाथ का पूजन किया। डमरू की गूंज और शिवभक्ति में लीन श्रद्धालुओं का जनसैलाब काशी की गलियों में उमड़ पड़ा। कई श्रद्धालु शिव-रूप धारण किए हुए थे, जो श्रद्धा और परंपरा की जीवंत तस्वीर पेश कर रहे थे।चंद्रवंशी गोसेवा समिति के अध्यक्ष ने जानकारी दी कि वर्ष 1932 में जब देश भीषण सूखे और अकाल से जूझ रहा था, तब एक संत ने सुझाव दिया कि काशी में यादव समुदाय द्वारा शिवालयों में जलाभिषेक से अकाल समाप्त हो सकता है।
तब 21 यादव बंधुओं को बाबा के गर्भगृह तक जल चढ़ाने की अनुमति दी गई थी। उस जलाभिषेक के बाद वर्षा हुई और अकाल समाप्त हुआ।तभी से हर वर्ष सावन के पहले सोमवार को यह परंपरा लगातार निभाई जा रही है।श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने विशेष अपील की थी कि किसी भी तरह की अराजकता या दौड़ से बचा जाए। यादव बंधुओं ने प्रशासन के निर्देशों का पूरी तरह पालन किया। मंदिर प्रशासन और पुलिस बल पूरी व्यवस्था संभाले हुए दिखे।यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि सामूहिक श्रद्धा और सामाजिक एकता की मिसाल बन चुका है। हजारों यादव बंधुओं की एकजुटता और शिवभक्ति ने एक बार फिर काशी को आध्यात्मिक रंगों से सराबोर कर दिया। इस दौरान महापौर अशोक तिवारी भी जल कलश लेकर मौजूद हुए और बाबा विश्वनाथ का जला अभिषेक किया |