आर्य महिला पी.जी. कॉलेज के महर्षि ज्ञानानन्द जी सभागार में पंजाबी अकादमी उत्तर प्रदेश एवं आर्य महिला पी.जी. कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में "गुरु नानक जी का साहित्यिक दृष्टिकोण और समकालीन वैश्विक नैतिक मूल्य" विषय पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में उपस्थित राजीव रंजन विदेशी भाषा विशेषज्ञ ने कहा कि गुरु नानक देव सिख धर्म के संस्थापक तथा 10 सिख गुरु में से प्रथम थे जिन्होंने धर्म के सिद्धांतों की स्थापना की। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने आध्यात्मिक यात्रा शुरू की और भारत तथा उसके बाहर व्यापक रूप से यात्रा करते हुए अपनी शिक्षा का प्रसार किया। अरविंद कुमार मिश्र, उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, ने पंजाबी अकादमी के विषय में विस्तृत चर्चा की।
"मूल मंत्र" सिखों का पवित्र धर्म ग्रंथ है जिसे "गुरु ग्रंथ साहिब "भी कहा जाता है प्रो.वशिष्ठ द्विवेदी, अध्यक्ष, हिंदी विभाग ,बी.एच.यू ने कहा कि गुरु नानक देव जी समानता भाईचारे और सामाजिक न्याय का संदेश देने वाले एक सच्चे गुरु थे जिन्होंने इक ओंकार नारा दिया तथा यह भी कहा कि मनुष्य को लोभ का परित्याग कर अपने ही हाथों से मेहनत करनी चाहिए तथा न्यायोचित तरीके से धन संग्रह करना चाहिए। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं महाविद्यालय के कुलगीत से हुआ । स्वागत भाषण महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. रचना दुबे ने किया । कार्यक्रम का संचालन डॉ. मीनाक्षी मिश्रा कार्यक्रम संयोजन अजय कुमार पांडेय, संयुक्त सचिव, सचिवालय उत्तर प्रदेश तथा प्रो. सुचिता त्रिपाठी हिन्दी विभाग, आर्य महिला पी.जी. कॉलेज तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ.वंदना चौबे के द्वारा किया गया।
द्वितीय सत्र में डॉ. जसप्रीत कौर" फ़लक" लुधियाना ,ने स्त्री के संदर्भ में गुरु नानक देव के चिंतन पर प्रकाश डाला। इस संगोष्ठी में संपूर्ण कार्यक्रम के संरक्षक डॉ.शशिकांत दीक्षित महाविद्यालय की शिक्षिकाएं प्रो.बिंदु लहरी प्रो. जया मिश्रा डॉ.पुष्पा त्रिपाठी डॉ. अन्नपूर्णा दीक्षित डॉ. नमिता गुप्ता डॉ.प्रीति तथा अन्य शिक्षिकाओं के साथ-साथ बड़ी संख्या में छात्राओं की भी सहभागिता रही।