बिस्मिल्लाह खान साहब की परंपरा को पोते अफाक हैदर ने किया जीवंत, शहनाई पर मातमी धुन से दी शहीदों को दी श्रद्धांजलि

वाराणसी में 4 जुलाई की रात, चांद की 8 तारीख को दरगाह फातमान पर एक भावुक क्षण देखने को मिला। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब की परंपरा को उनके पोते अफाक हैदर ने आगे बढ़ाते हुए शहीदों की याद में शहनाई पर मातमी धुनें बजाईं।बिस्मिल्लाह खान साहब जीवन भर इसी दरगाह पर चांदी की शहनाई से आंसुओं का नजराना पेश करते थे। 

उसी परंपरा को निभाते हुए अफाक हैदर और उनकी पार्टी ने "अब्बास क्या तरही में सोते हो", "अकबर का लाशा नहीं उठ सकेगा", "हुसैन से डूबता जाता है कहीं दिल" जैसे अशआरों को शहनाई की धुन पर पेश कर माहौल को मातमी बना दिया।इस अवसर पर जाकिर हुसैन, नाजिम हुसैन, अददार हुसैन, और शकील अहमद जादूगर सहित कई गणमान्य उपस्थित रहे।


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