भारत और अमेरिका के बीच 2030 तक 500 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य की राह में एक अनोखा लेकिन संवेदनशील मुद्दा सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आया है नॉनवेज दूध। दरअसल, अमेरिका भारत को अपने डेयरी उत्पाद निर्यात करना चाहता है, लेकिन भारत इसे लेकर पूरी तरह से सतर्क और सख्त है।भारत की आपत्ति का कारण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक भी है। भारत में दूध और उससे बने उत्पादों का उपयोग सिर्फ पोषण नहीं बल्कि पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता है। वहीं अमेरिका में दुधारू पशुओं को मांस, खून और अन्य जानवरों से बने चारे दिए जाते हैं, जो भारतीय मानकों के अनुसार पूरी तरह “मांसाहारी” हैं।इतिहास में भी ऐसा ही विवाद 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में देखा गया था, जब गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूस ने विद्रोह को जन्म दिया था। ऐसे में आज भी भारतीय भावनाएं और आस्थाएं डेयरी प्रोडक्ट्स की शुद्धता को लेकर बेहद संवेदनशील हैं।
यही वजह है कि भारत सरकार ने बिना “शाकाहारी प्रमाणन” वाले डेयरी उत्पादों के आयात को मंजूरी नहीं दी है। अमेरिका की ओर से भारी दबाव के बावजूद भारत ने अपने रुख में कोई नरमी नहीं दिखाई है। डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अगस्त तक की डेडलाइन दी है, जिसके बाद भारत के उत्पादों पर 26% टैरिफ लगाने की धमकी दी गई है।विशेषज्ञों के अनुसार अगर भारत ने अमेरिकी डेयरी उत्पादों को अनुमति दे दी तो यहां की घरेलू डेयरी इंडस्ट्री, जिसकी कीमत लगभग 9 लाख करोड़ रुपये है और जो 8 करोड़ लोगों को रोज़गार देती है, उसे गंभीर नुकसान हो सकता है। अमेरिका के सस्ते उत्पाद बाजार में उतरेंगे तो किसानों की कमाई घटेगी और देसी उद्योग संकट में आ सकता है।भारत ने साफ कर दिया है कि किसी भी विदेशी डेयरी उत्पाद को तभी मंजूरी मिलेगी जब वह “पूरी तरह शाकाहारी और धार्मिक मानकों पर खरा” उतरेगा।