काशी की विलुप्त होती सांगीतिक परंपरा “बेला बाड़ी” को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से आवर्तन संगीत संस्था, नागरी नाटक मंडली न्यास, संस्कार भारती तथा संगीत परिषद के संयुक्त तत्वावधान में रविवार, 27 जुलाई को एक सांगीतिक आयोजन संपन्न हुआ। शहर के सांस्कृतिक केंद्र नागरी नाटक मंडली न्यास प्रांगण में आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में 10 वर्ष के बच्चों से लेकर 70 वर्ष तक की महिलाओं ने पुरानी कजरी और मल्हार की दुर्लभ बंदिशों की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, जिसे राज्य मंत्री दया शंकर मिश्र, संजय मेहता (अध्यक्ष, नागरी नाटक मंडली न्यास), गणेश अवस्थी (अध्यक्ष, संस्कार भारती काशी प्रांत), विनय जैन (अध्यक्ष, संगीत परिषद काशी) और सुमन पाठक (उपाध्यक्ष, आवर्तन संस्था) ने संयुक्त रूप से संपन्न किया। कार्यक्रम की शुरुआत वीणा अग्निहोत्री द्वारा रचित बेला गीत से हुई, जिसके बाद बच्चों ने शंकर जी की कजरी और झूला प्रस्तुत कर मन मोह लिया। इसके पश्चात सप्तक की महिलाओं ने राग चरजू की मल्हार, सुर मल्हार, नट मल्हार, केदार मल्हार, ब्रज की झूला और शिव जी झूला जैसी पारंपरिक बंदिशों की प्रस्तुति दी। आवर्तन संस्था के कलाकारों ने राग मेघ मल्हार, गौड़ मल्हार, जयंत मल्हार, मियाँ मल्हार और हुम्रा बाई की कजरी से दर्शकों को रससिक्त कर दिया।
कार्यक्रम का समापन नवांकुर के छात्रों द्वारा प्रस्तुत शायरी आधारित कजरी से हुआ। कार्यक्रम में स्मिता भटनागर, दीपक था, अनुपम राजपूत (तबला), मनोहर श्रीवास्तव और वैभव मिश्र (हारमोनियम), प्रांजल सिंह (बांसुरी), अमित रॉय (सिंथेसाइज़र) और सनी कुमार (ढोलक) ने उत्कृष्ट संगत दी।
मुख्य अतिथि दया शंकर मिश्र ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि “यह केवल सांस्कृतिक आयोजन नहीं, हमारी लोक परंपरा के पुनर्जीवन का संगम है।” उन्होंने सभी संस्थाओं और कलाकारों को धन्यवाद देते हुए कहा कि काशी की इस कला विरासत को संजोए रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है। आभार ज्ञापन मीनाक्षी और आशुतोष चतुर्वेदी द्वारा किया गया, जबकि गणेश अवस्थी ने आयोजन की सफलता पर संतोष व्यक्त किया।