नागपंचमी के पावन अवसर पर मंगलवार को काशी का ऐतिहासिक तुलसी घाट एक बार फिर पहलवानी के जुनून से गूंज उठा। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित स्वामीनाथ अखाड़ा इस दिन पूरी तरह से गुलजार रहा, लेकिन इस बार नज़ारा कुछ अलग था। जहां कभी केवल पुरुष पहलवानों की कुश्ती की परंपरा थी, वहीं अब काशी की बेटियां भी उसी मिट्टी में अपने दांव-पेंच आजमा रही हैं। 478 वर्षों से चली आ रही पुरुष वर्चस्व वाली इस परंपरा को बेटियों ने न केवल चुनौती दी है, बल्कि सफलता की नई कहानी भी लिखी है। मंगलवार को अखाड़े में हुए दंगल में बालकों और बालिकाओं दोनों ने दमखम दिखाया।
खास आकर्षण रही नीदरलैंड की महिला पहलवान शांति, जिन्होंने जोड़ी गद्दा फेरा और दर्शकों की तालियां बटोरीं। उनके साथ नीदरलैंड के ही हर्बर्ट भी अखाड़े में नजर आए। स्वामीनाथ अखाड़े में अब हर दिन लड़कियां सुबह-शाम दो घंटे की कड़ी मेहनत से दांव-पेंच सीख रही हैं। पिछले तीन वर्षों में यहां से निकली दर्जनों महिला पहलवानों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन किया है। नागपंचमी के मौके पर संकट मोचन मंदिर के महंत विशंभर नाथ मिश्र ने अखाड़े में पहुंचकर हनुमान जी का विधिवत पूजन किया और पारंपरिक दंगल की शुरुआत की घोषणा की। इसके बाद मिट्टी के अखाड़े में बारी-बारी से लड़कों और लड़कियों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। दंगल देखने बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, विदेशी पर्यटक और खेलप्रेमी जुटे। दर्शकों ने बेटियों के हौसले को सलाम किया और लगातार उनका उत्साहवर्धन करते रहे। यह वही अखाड़ा है, जहां गोस्वामी तुलसीदास कभी स्वयं रियाज किया करते थे। अब उसी भूमि पर लड़कियां भी पहलवानी में अपना भविष्य तलाश रही हैं। नागपंचमी पर यह आयोजन सिर्फ परंपरा का निर्वाह नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की मिसाल भी बन गया है।