अमेरिका की ट्रंप सरकार ने ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल उत्पादों के व्यापार को लेकर भारत की सात कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कार्रवाई ट्रंप प्रशासन की "अधिकतम दबाव" नीति के तहत की गई है, जिसका उद्देश्य ईरान की तेल निर्यात क्षमता को खत्म करना और उस पर आर्थिक नकेल कसना है।अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अनुसार, इन कंपनियों पर कार्यकारी आदेश (ई.ओ.) 13846 के तहत प्रतिबंध लगाए गए हैं, जो ईरानी पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल सेक्टर पर केंद्रित है। इन प्रतिबंधों का असर इन कंपनियों के अमेरिकी बाजारों तक पहुंच और वैश्विक वित्तीय लेन-देन पर पड़ेगा।प्रतिबंधित भारतीय कंपनियों में शामिल हैं:कंचन पॉलिमर्स: इस कंपनी ने यूएई की टैनैस ट्रेडिंग से 1.3 मिलियन डॉलर मूल्य के ईरानी पेट्रोकेमिकल उत्पाद आयात किए।एल्केमिकल सॉल्यूशंस प्रा. लि. कंपनी ने 2024 में 84 मिलियन डॉलर से अधिक के ईरानी पेट्रोकेमिकल उत्पाद खरीदे।रामणिकलाल एस. गोसालिया एंड कंपनी: इसने 22 मिलियन डॉलर से अधिक के मेथनॉल और टोल्यूनि जैसे उत्पाद खरीदे।जुपिटर डाई केम प्रा. लि.: कंपनी ने टोल्यूनि सहित 49 मिलियन डॉलर के पेट्रोकेमिकल उत्पाद खरीदे।ग्लोबल इंडस्ट्रियल केमिकल्स लि.: इस कंपनी ने 51 मिलियन डॉलर के मेथनॉल उत्पादों का व्यापार किया।पर्सिस्टेंट पेट्रोकेम: इसने करीब 14 मिलियन डॉलर मूल्य के ईरानी उत्पाद आयात किए।ईएनएसए शिप मैनेजमेंट प्रा. लि. (मुंबई): यह कंपनी ईरानी तेल से जुड़े जहाजों के प्रबंधन में शामिल रही।इसके साथ ही अमेरिका ने इन कंपनियों से जुड़ी 20 अन्य संस्थाओं और 10 जहाजों को भी प्रतिबंधित किया है। साथ ही, जिन संस्थाओं में इन कंपनियों की 50% या उससे अधिक हिस्सेदारी है, वे भी प्रतिबंध के दायरे में आएंगी।
इन प्रतिबंधों के तुरंत बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर एक अगस्त से 25% आयात शुल्क लगाने की घोषणा भी की है। इसके अतिरिक्त, रूस से सैन्य उपकरण और कच्चा तेल खरीदने पर भारत को अतिरिक्त जुर्माना झेलना पड़ेगा।यह कदम ऐसे समय पर आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत चल रही थी, और एक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल के अगस्त में भारत दौरे की तैयारी भी चल रही थी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह अमेरिका की ओर से भारत पर दबाव बनाने की रणनीति है, क्योंकि भारत ने हाल ही में जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ व्यापारिक समझौते किए हैं, जिससे अमेरिका को किनारे कर दिया गया है।यह कार्रवाई भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों में एक नई चुनौती खड़ी कर सकती है और आने वाले दिनों में इसके कूटनीतिक असर भी देखने को मिल सकते हैं।