उत्तर प्रदेश के बरेली में फैमिली कोर्ट के जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने एक केस की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अगर घर बसाना है तो दामाद को बेटी के साथ मायके में रहना होगा।यह गलत सोच और खराब संस्कार की निशानी है। इसका वैवाहिक परंपराओं से कोई संबंध नहीं है।जज ने कहा विवाह एक जिम्मेदारी है कोई समझौता नहीं।मामला गुजारा भत्ता से जुड़ा है जस्टिस त्रिपाठी बरेली की नई बस्ती माधोबाड़ी की एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं। महिला ने अपने पति पर अलग रहने और खर्च न देने के आरोप लगाए।शादी का पृष्ठभूमि:महिला की शादी साल 2018 में मुरादाबाद के कटघर इलाके के रहने वाले ब्रजेश, जो एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं, से हुई। शादी के एक साल के भीतर ही दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया।
झगड़ों से परेशान होकर महिला अपने मायके लौट आई और गुजारा भत्ता की मांग करते हुए कोर्ट पहुंची।सुनवाई के दौरान कोर्ट ने महिला के सभी आरोपों को खारिज कर दिया और उसे 10 हजार रुपए का जुर्माना भरने का आदेश दिया।जज त्रिपाठी ने कहा कि पति-पत्नी दोनों को वैवाहिक जिम्मेदारियों का निर्वहन समान रूप से करना चाहिए, न कि एक-दूसरे पर शर्तें थोपनी चाहिए।

