उर्दू–हिन्दी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन:खवातीन की अदबी खिदमात

वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय, उर्दू अनुभाग द्वारा आयोजित “रुझानात-ए-खवातीन और उर्दू अदब” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज सफल समापन हुआ। समापन सत्र का संचालन डॉ. नाज़ बेगम ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और अपर्णा व उनकी टीम के सुरीले फुनगीत गायन से हुई। इसके बाद मंचासीन अतिथियों को सम्मानित किया गया।स्वागत भाषण में प्राचार्या प्रो. रीता गैस ने इस्मत चुगताई, महादेवी वर्मा और ‘लिहाफ’ की लोकप्रियता का हवाला देते हुए कहा कि “जब कोई महिला अपनी बात लिखती है तो वह खुद-ब-खुद क्रांतिकारी बन जाती है।”डॉ. नाज़ बेगम ने संगोष्ठी की रूपरेखा बताते हुए कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य उर्दू अदब में महिलाओं की खिदमात और रुझानों की परतें खोलना है।AMU के प्रो. कमर-उल-हुदा फरीदी ने कहा कि उर्दू अदब हो या कोई भी साहित्य—आख़िरकार हम ज़िंदगी की किताब पढ़ रहे होते हैं। 

उन्होंने अकबरी बेगम से लेकर रशीद जहां और इस्मत चुगताई तक महिलाओं के अदबी योगदान को रेखांकित किया।मोहम्मद अली जौहर ने कहा कि पहले खवातीन अपने नाम से तकलीफें प्रकाशित भी नहीं करा पाती थीं, जबकि आज उर्दू फिक्शन और शायरी दोनों में उनका नाम बुलंदी पर है।मुख्य अतिथि प्रो. शहाबुद्दीन साकिब ने कहा कि “25 वर्षों में इस विषय पर कोई बड़ा सेमिनार नहीं हुआ। महिला महाविद्यालय की यह पहल काबिले-तारीफ है।” उन्होंने हाली की ‘मुनाजात-ए-बेवा’ का उल्लेख करते हुए कहा कि उर्दू में खवातीन के योगदान की एक मुकम्मल किताब की ज़रूरत है।समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो. अफताब अहमद आफ़की ने कहा कि उर्दू अदब में महिलाओं को जितनी तवज्जो मिलनी चाहिए, वह अब भी कम है। उन्होंने खवातीन के फिक्शन, तहकीक और तज्करों में बढ़ते योगदान को सराहा।सत्र के अंत में डॉ. उत्तम गिरि ने धन्यवाद ज्ञापन किया। हिंदी और उर्दू दोनों अनुभागों के शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी बड़ी संख्या में मौजूद रहे। 



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