वाराणसी में कोडिनयुक्त नशीले कफ सिरप की अवैध बिक्री के बड़े रैकेट का खुलासा होने के बाद सिर्फ दवा कारोबारी ही नहीं, अब एफएसडीए विभाग के सहायक आयुक्त और ड्रग इंस्पेक्टर भी जांच के दायरे में आ गए हैंजांच में पता चला है कि पिछले छह वर्षों में जारी कई थोक दवा लाइसेंस बोगस फर्मों को दिए गए, जिनमें से कई सिर्फ कागजों पर संचालित पाई गईं।नियमों के अनुसार लाइसेंस से पहले पते का भौतिक सत्यापन अनिवार्य है, लेकिन कई मामलों में ना तो निरीक्षण हुआ और ना ही दस्तावेज़ों की सही जांच, जिससे अधिकारियों की भूमिका पर गहरे संदेह उठे हैं।उच्चाधिकारियों ने बताया कि 2019 से अब तक तीन सहायक आयुक्त और पांच ड्रग इंस्पेक्टर वाराणसी में तैनात रहे, इसी अवधि में 89 थोक दवा लाइसेंस जारी किए गए, जिनमें से कई संदिग्ध पाए गए हैं।
विभाग की अतिरिक्त सचिव रेखा एस. चौहान ने पुष्टि की कि“जांच पूरी पारदर्शिता से हो रही है। अगर कोई अधिकारी दोषी पाया गया तो तुरंत कार्रवाई होगी।”मामले के मास्टरमाइंड शुभम जायसवाल के पिता भोला जायसवाल की रांची स्थित फर्म ‘शैली मेसर्स ट्रेडर्स’ ने बनारस की 126 फर्मों को कोडिनयुक्त सिरप की सप्लाई की थी।जांच में सामने आया कि इनमें से कई फर्में अस्तित्व में ही नहीं थीं — कहीं लाइसेंस पर दर्ज पते पर सामान्य मकान मिला, तो कहीं जनरल स्टोर, जिससे अधिकारियों की लापरवाही उजागर होती है।कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने रैकेट में गिरफ्तार बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह को लेकर सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा:“बाइक चोरी में पुलिस इंसान को लंगड़ा कर देती है, लेकिन हजारों जिंदगियां बर्बाद करने वालों को दामाद जैसा सम्मान क्यों दिया जा रहा है?”अजय राय ने आरोप लगाया कि आरोपी को जेल में सुविधाएं दी जा रही हैं, जबकि बड़ी संख्या में युवाओं को जहरीला सिरप बेचने वाले नेटवर्क को अब तक पूर्ण रूप से ध्वस्त नहीं किया गया है।

