सभी अलग-अलग धर्मो की मान्यता अब होगी खत्म ये कहना है ब्रह्मचारी राम चैतन्य का पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि इसके लिए धर्म को अच्छी तरह समझना और पूरे मानव-समाज को समझाना होगा। धर्म को समझने से अधर्म को समझना होगा। अधर्म के बारे में पूरा विश्व सही सही जानता है, और एक मत है, कि अधर्म का एक ही मतलब होता है- कुकर्म अन्याय, पापकर्म आदि पर्यायवाची शब्द हैं। अधर्म का विपरीतार्थक शब्द होता है धर्म तो धर्म कुकर्म का विपरीतार्थक शब्द हुआ यानी कुकमों की पूरी सूचि हो गई अधर्म । सुकर्मो की पूरी सूचि हो गई धर्म। गीता में कर्तव्य के लिए धर्म शब्द का प्रयोग हुआ है। किसी मनुष्य के लिए निर्धारित उसके सभी कर्त्तव्यों की पूरी सूची उसका धर्म है।
उन्होंने कहा की सनातन का मतलब पुराना तथा धर्म का मतलब कर्त्तव्यों की व्यवस्था। जो पहले था। अतः सुकर्मों की सूचि का भी अधर्म की तरह एक से अधिक नाम नहीं गिनाये जा सकते हैं। अतः ये सब नाम हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिक्ख, यहुदी, पारसी, आदि धर्म के नाम नहीं हैं। इन सब नामों से सुकर्मों की सूचि का सम्बोधन नहीं होता है।अतः ये सब नाम धर्म के नहीं हैं। इस तरह के धर्म का नामाकरण होने से और अलग-अलग मान्यता से मानव-समाज में दुःख और अशांति फैल रही है। आपस में झगड़े हो रहे हैं। इससे देश की एकता एवं अखण्डता को खतरा है। ऐसा नामाकरण और अलग-अलग मान्यता अपने आप में अधर्म का कार्य हो गया है। धर्म तो सुख- शान्ति, लाने के लिए होता है। मान्यता देने वाला, धर्म के मामले में अज्ञानी है। इतनी बातों को, यानी धर्म को, और अधर्म को, अच्छी तरह समझ वं पूरे विश्व के मानव-समाज को समझाने से कभी न कभी पूरे विश्व से इनकी धर्म के रूप में मान्यता खत्म हो जायगी।