नवरात्र के पावन दिन आज से शुरू हो गए हैं. हिंदू मान्यताओं में इन नौ दिनों में देवी मां की पूजा का विशेष महत्व होता है. देवी के नौ रूपों की अराधना का आरंभ 15 अक्टूबर से हो गया है. सभी श्रद्धालु कलश स्थापना कर यह पर्व भक्ति भाव से मना रहे हैं । नवरात्रि के पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है. वाराणसी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है और इसी नगरी में है मां दुर्गा के 'शैलपुत्री' रूप वाला पहला मंदिर. वाराणसी के अलईपुर में यह प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर सिटी स्टेशन से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
लोगों का मानना है कि मां शैलपुत्री खुद इस मंदिर में विराजमान हैं. दरअसल, हर साल नवरात्रि के पहले दिन इस मंदिर में पैर रखने की भी जगह नहीं होती. यहां आकर सुहागन महिलाएं अपने पति की उम्र की कामना करती हैं. मान्यता है कि मां शैलपुत्री हर मनोकामना सुनती हैं. श्रद्धालु मां के लिए लाल चुनरी, लाल फूल और नारियल लेकर आते हैं और सुहाग का सामान भी चढ़ाते हैं.बताया जाता है कि यह मंदिर कब स्थापित हुआ या किसने किया, इसकी कोई जानकारी नहीं है.
अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मंदिर कितना पुराना होगा. इतना ही नहीं, यहां के सेवादार दावा भी करते हैं कि पूरी दुनिया में ऐसा मंदिर कहीं और नहीं होगा. क्योंकि यहां मां शैलपुत्री स्वयं विराजमान हुई थीं और ऐसी जानकारी दुनिया के और किसी मंदिर के बारे में नहीं है. मान्यता है कि माता पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया था. इसलिए उनका नाम मां शैलपुत्री हुआ. माता एक बार महादेव की किसी बात से नाराज थीं और कैलाश छोड़कर काशी आ गईं. लेकिन, भोलेनाथ देवी को नाराज कैसे रहने देते? इसलिए खुद उन्हें मनाने के लिए वाराणसी आए. उस समय माता ने शिव जी को बताया कि उन्हें यह स्थान बहुत भा गया है. अब वह यहीं रहना चाहती हैं. और यह कहकर वह इसी मंदिर के स्थान पर विराजमान हो गईं. यही वजह है कि यहां पर यह आलीशान प्राचीन मंदिर बना और हर नवरात्र यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.
हिमालय की गोद में जन्म लेने वाली मां का नाम इसलिए ही शैलपुत्री पड़ा. बता दें, माता का वाहन वृषभ है. यही वजह है कि उन्हें देवी 'वृषारूढ़ा' भी कहा जाता है. मां के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है. इस रूप को प्रथम दुर्गा भी कहा गया है. बता दें, मां शैलपुत्री को ही सती के नाम से भी जाना जाता है. पार्वती और हेमवती भी इन्ही देवी रूप के नाम हैं. वही शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन मान्यता अनुसार काफी संख्या में भक्तों ने पहुंचकर माता के दरबार में हाजिरी लगाई भक्तों का रेल ऐसा उमड़ा की दूर-दूर तक लाइन लगी रही। पूरे मंदिर परिक्षेत्र में माला फूल की दुकानें सजी रहे इसके साथ ही माता का दरबार भी आकर्षक रूप से सजाया गया भक्त मां के अलौकिक स्वरूप का दर्शन पूजन कर निहाल हो गए।