वाराणसी के सर्किट हाउस परिसर में लाट शाही मजार की आड़ में किए गए अवैध अतिक्रमण और निर्माण को लेकर प्रशासन की ओर से दी गई तीन दिन की डेडलाइन समाप्त हो चुकी है। लोक निर्माण विभाग ने मजार कमेटी से दस्तावेज मांगे थे, लेकिन समयसीमा के भीतर कोई वैध कागजात प्रस्तुत नहीं किए गए। अब प्रशासन आगे की सख्त कार्रवाई के मूड में है।इसी मुद्दे को लेकर अधिवक्ता विनीत सिंह के नेतृत्व में वकीलों का एक प्रतिनिधिमंडल जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचा। उन्होंने ज्ञापन देकर मीरापुर बसही (भोजूबीर-सिंधोरा मार्ग) स्थित सड़क के बीच बनी सैयद बाबा मजार को हटाने की मांग की। उनका कहना है कि रोड चौड़ीकरण के दौरान कई मंदिर हटा दिए गए थे, लेकिन मजार को छोड़ दिया गया, जबकि इससे यातायात बाधित हो रहा है और आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं। स्थानीय लोगों का इस पर कोई विरोध भी नहीं है।सीएम योगी आदित्यनाथ ने 17 जुलाई को वाराणसी प्रवास के दौरान सर्किट हाउस में हुई समीक्षा बैठक में शहर में सरकारी भूमि पर हो रहे अवैध कब्जों पर नाराजगी जताई थी। विशेष रूप से मजार की आड़ में हो रहे अतिक्रमण का मुद्दा भी बैठक में उठा था। इसके बाद 20 जुलाई को प्रशासन और PWD की टीम बुलडोजर के साथ मौके पर पहुंची और मजार के आसपास बने अवैध ढांचों को ढहा दियालाट शाही मजार को लेकर पिछले 15 सालों से जिला प्रशासन और लोक निर्माण विभाग नोटिस जारी करते रहे, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। वीवीआईपी इलाके में होने के कारण अधिकारी कार्रवाई से बचते रहे। धीरे-धीरे कच्चे निर्माण पक्के ढांचों में बदल गए। पिलर खड़े हो गए, टीन शेड लग गया और अतिक्रमण का दायरा बढ़ता गया।सबसे पहला नोटिस वर्ष 2010 में मायावती सरकार के दौरान ACM चतुर्थ ने जारी किया था।
इसमें मजार के पास हो रहे निर्माण को अवैध बताते हुए तत्काल रोकने और दस्तावेज प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। लेकिन इसके बाद भी निर्माण जारी रहा।2012 में आई अखिलेश सरकार के दौरान मजार के चारों ओर पिलर खड़े कर जमीन घेर ली गई। वर्ष 2015 में करीब एक बीघा भूमि पर कंटीले तार, झुग्गी और गुमटियां लगाकर कब्जा कर लिया गया। 2017 में योगी सरकार आने के बाद भी चोरी-छिपे निर्माण होता रहा और पक्के ढांचे तैयार कर लिए गए।अब जबकि सरकार ने अवैध कब्जों पर सख्त रुख अपनाया है, लंबे समय से चली आ रही नोटिस की औपचारिकता को समाप्त करते हुए प्रशासन ने धरातल पर कार्रवाई शुरू कर दी है।