मुहर्रम की 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा मनाया गया। मुस्लिम समुदाय इस दिन को हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शोक और मातम के रूप में मनाता है। हजरत इमाम हुसैन, जो पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे थे, को कर्बला के मैदान में बादशाह यजीद की सेना ने घेर लिया था. मुहर्रम के पहले नौ दिनों तक उन्होंने अल्लाह की इबादत की, और दसवें दिन यानी यौम-ए-आशूरा के दिन उन्हें उनके परिवार और साथियों समेत शहीद कर दिया गया। उनकी कुर्बानी की याद में यह दिन गम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
यौम-ए-आशूरा पर शहर भर से ताजिया उठाई गई और जुलूस की शक्ल में दरगाह फातमान पहुंचकर इसे ठंडा किया गया। नई सड़क स्थित बाकर हुसैन के इमामबाड़े से मुहर्रम की 10तारीख को हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर अब्बास मुर्तुजा शमशी के द्वारा तकरीर पेश किया गया। बाकर हुसैन के इमामबाड़े से कदीमी दुलदुल व अलम का जुलूस निकला जिसमें अंजुमन हैदरी ने नौहा मातम किया। युवाओं ने जंजीर का मातम किया।इस दौरान या हुसैन की सदाये गूंजती रही।