सीतापुर में पत्रकार हत्याकांड के दो शूटर एनकाउंटर में ढेर, पत्नी ने कहा,"ये इंसाफ नहीं, साजिश को छिपाने की कोशिश है"

सीतापुर में पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई हत्याकांड के दो वांछित शूटरों को उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने मुठभेड़ में मार गिराया। गुरुवार तड़के पिसावा इलाके में चेकिंग के दौरान बाइक सवार दोनों अपराधियों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी, जिसके जवाब में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं। दोनों घायल अवस्था में जिला अस्पताल लाए गए, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। मारे गए दोनों अपराधियों की पहचान राजू तिवारी उर्फ रिजवान खान और संजय तिवारी उर्फ अकील खान के रूप में हुई। दोनों सगे भाई थे और हत्या, लूट, डकैती जैसे 24 से अधिक संगीन अपराधों में वांछित थे। उनके ऊपर एक-एक लाख रुपये का इनाम भी घोषित था। इन दोनों के पास दो आधार कार्ड पाए गए—एक हिंदू नाम से और दूसरा मुस्लिम नाम से। उनके माता-पिता ने प्रेम विवाह किया था, मां मुस्लिम और पिता हिंदू थे, जिसके कारण उनके नामों में 'तिवारी' और 'खान' दोनों सरनेम जुड़े थे।पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की हत्या 8 मार्च को लखनऊ-दिल्ली हाईवे पर हुई थी, जब बाइक सवार बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी थी। हत्या के पीछे की साजिश कारीदेव बाबा मंदिर के पुजारी शिवानंद बाबा उर्फ विकास राठौर ने रची थी। राघवेंद्र ने पुजारी को आपत्तिजनक स्थिति में किसी के साथ देख लिया था और उसकी फोटो भी खींच ली थी। पुजारी को डर था कि राघवेंद्र यह बात सार्वजनिक कर देंगे, इसलिए उसने शूटरों को 4 लाख की सुपारी देकर पत्रकार की हत्या करवा दी। इस मामले में पुजारी सहित तीन लोगों को पहले ही जेल भेजा जा चुका है।हालांकि इस मुठभेड़ को लेकर पत्रकार की पत्नी रश्मि बाजपेई ने गहरी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि यह एनकाउंटर सिर्फ दिखावा है, इससे उन्हें न्याय नहीं मिला। उन्होंने कहा कि पुलिस ने पहले आश्वासन दिया था कि एनकाउंटर वहीं किया जाएगा जहां राघवेंद्र की हत्या हुई थी, और वह भी उनके सामने, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

रश्मि ने सीबीआई जांच की मांग दोहराई और कहा कि जब तक निष्पक्ष जांच नहीं होगी, तब तक असली साजिशकर्ता सामने नहीं आएंगे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जो लोग उनके समर्थन में खड़े हुए, उन्हें प्रशासनिक दबावों के चलते पीछे हटना पड़ा।यह मामला न सिर्फ पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि एक हत्या की सच्चाई को सामने लाने के लिए कितनी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। एनकाउंटर के जरिए कानून का डर जरूर दिखाया जा सकता है, लेकिन पीड़ित परिवार की अपेक्षा न्याय की होती है, जो सिर्फ गोलियों से नहीं, सच्चाई और पारदर्शिता से मिलती है

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