भारतीय शास्त्रीय संगीत के दिग्गज, पद्मभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन पर आयरलैंड की राजधानी डबलिन में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्र ने गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने एक श्रद्धांजलि पत्र जारी करते हुए कहा कि “भारतीय शास्त्रीय संगीत की अमर परंपरा का एक विलक्षण अध्याय समाप्त हो गया है। लेकिन पंडित के स्वर, उनके विचार और उनके लोक मंगलकारी दृष्टिकोण की गूंज आज भी पूरे भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य में प्रतिध्वनित हो रही है।”राजदूत अखिलेश मिश्र ने अपने पत्र में पंडित जी से जुड़ी एक आत्मीय स्मृति का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि 2019 में वाराणसी यात्रा के दौरान बिना किसी पूर्वनिर्धारित योजना के पंडित से भेंट हुई थी। बनारसी अंदाज़ में पंडित ने आगंतुकों का स्नेहपूर्वक स्वागत किया और अपने “अक्षयपात्र” से कचौड़ी व गुलाबजामुन का मधुर प्रसाद भी खिलाया। जब अतिथियों ने उनसे गाने का आग्रह किया तो पंडित जी ने कहा— “खाना हो या गाना, दोनों ही श्रद्धा और समय की मांग करते हैं।” यह वाक्य उनकी संगीत-दर्शन पर गहरी समझ और लोकाचार के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।अखिलेश मिश्र ने आगे लिखा कि पंडित की संगीत-दृष्टि में भारतीय गायन केवल श्रव्य अनुभव नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है।
वे परा, पश्यंती, मध्यमा और वैखरी— इन चार स्तरों की वाणी का उल्लेख करते हुए कहते थे कि असली संगीत की अनुभूति भीतर के स्तरों पर होती है, जहाँ शब्द, शैली और परंपरा की सीमाएं मिट जाती हैं।इस बीच, पंडित की बेटी ने बताया कि उनके पिता को हरिहरपुर में संगीत महाविद्यालय खुलने की खबर से अत्यंत प्रसन्नता थी। वे चाहते थे कि उनका गुरुकुल आगे बढ़े और संगीत घराना मजबूत हो। उन्होंने कहा— “पिता हमेशा कहते थे कि संगीत घराने को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। वे अपने गुरु महाराज की बातें करते थे और हमें हिम्मत रखने को कहते थे।”पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। भारतीय संगीत जगत ने एक ऐसे साधक को खो दिया है, जिनकी साधना, सरलता और स्वर सदैव स्मरणीय रहेंगे।