पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध कार्तिक गंगा मेले की शुरुआत हो चुकी है। इस बार मेला एक ऐतिहासिक बदलाव का गवाह बन रहा है गंगा की धारा के मुड़ने से मेला स्थल गढ़मुक्तेश्वर से करीब 4 किलोमीटर दूर तिगरी (अमरोहा) जिले की ओर खिसक गया। करीब 40 साल बाद ऐसा हुआ , जब गढ़मुक्तेश्वर और तिगरी के गंगा मेले आमने-सामने आ गए ।गंगा के रुख बदलने से मेला क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति पूरी तरह बदल गई। जिला प्रशासन को इस बार नया मेले का क्षेत्र तैयार करना पड़ा। जब प्रशासन ने तिगरी मेला क्षेत्र की फसल कटवाने की प्रक्रिया शुरू की, तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ — पता चला कि यहां कई मौजूदा और पूर्व अफसरों ने सैकड़ों बीघा जमीन खरीदी हुई हैं और उस पर फॉर्म हाउस बनवा रखे हैं।इन जमीनों की देखभाल के लिए उन्होंने नौकर और कर्मचारी तैनात किए हुए हैं। फसल कटवाने के लिए जिला प्रशासन को इन्हीं लोगों से अनुरोध करना पड़ा, तब जाकर भूमि खाली कराई जा सकी।ग्राउंड जीरो पर पहुंचे संवाददाताओं ने मेले के बदले स्वरूप को करीब से देखा और स्थानीय लोगों से बातचीत की। मेले में हर साल आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि इस बार गंगा का प्रवाह अलग दिशा में होने के कारण घाटों की संरचना और मेले की व्यवस्था में बड़ा बदलाव दिख रहा है।
फिर भी श्रद्धालुओं का उत्साह बरकरार है। गंगा स्नान, दान और पूजा-पाठ का सिलसिला जारी है। जिला प्रशासन ने सुरक्षा, रोशनी, पार्किंग और चिकित्सा सुविधाओं के लिए विशेष इंतजाम किए ।स्थानीय लोगों का कहना है कि “गंगा मां ने 40 साल बाद रुख बदला, पर आस्था की लहर वही पुरानी है — बस इस बार गंगा के संगम पर दोनों मेले एक साथ दिख रहे हैं।”

