जिला मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित लमही गांव में आज भी उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की यादें जीवंत हैं। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर प्रेमचंद स्मारक और पैतृक आवास में श्रद्धा और साहित्य का संगम देखने को मिला।संस्कृति विभाग द्वारा निर्मित प्रेमचंद स्मारक में उनके जीवन और रचनाओं से जुड़ी अनेक ऐतिहासिक वस्तुएं — जैसे उनका चरखा, पिचकारी और लेखन सामग्री — आज भी संरक्षित हैं। स्मारक में उनके प्रसिद्ध उपन्यासों और कहानियों की झलक भी देखने को मिलती है, जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके साहित्यिक योगदान से परिचित होती हैं।पुण्यतिथि के अवसर पर स्मारक परिसर को विशेष रूप से सजाया गया और साफ-सफाई की गई। बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, विद्यार्थी और साहित्य प्रेमी प्रेमचंद जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि देने पहुंचे।इस अवसर पर मुंशी प्रेमचंद स्मारक के संरक्षक सुरेश चंद्र दुबे ने कहा, “प्रेमचंद जी ने समाज के हर तबके की पीड़ा को अपनी लेखनी से आवाज दी। उनका साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है।”
छात्रा नेहा ने कहा, “हम प्रेमचंद जी की कहानियों से समाज और मानवीय संवेदनाओं की सच्चाई सीखते हैं।” वहीं छात्र सौरभ ने बताया, “प्रेमचंद जी की रचनाएं हमें सच्चाई और समानता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।”कार्यक्रम के दौरान पूरे परिसर में ‘गोदान’, ‘गबन’ और ‘कफन’ जैसी रचनाओं की गूंज सुनाई दी, जो इस महान कथाकार की अमर विरासत को एक बार फिर जीवंत कर गई।