अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी के भारत दौरे के दौरान देवबंद में आयोजित कार्यक्रम में महिलाओं, विशेषकर महिला पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। आयोजकों ने कहा कि महिलाएं पर्दे के पीछे बैठें। इस निर्देश से वहां मौजूद महिला पत्रकारों में नाराजगी फैल गई और मामला चर्चा में आ गया।
कार्यक्रम स्थल पर जब कुछ पत्रकारों ने विरोध जताया तो आयोजकों ने यह तर्क दिया कि “कुछ लोग मुत्ताकी से मिलने के लिए बेकाबू हो सकते हैं”, इसलिए महिलाओं को अलग बैठने को कहा गया। इस बयान से विवाद और बढ़ गया। मौके पर मौजूद पुलिस ने स्थिति संभालने के लिए हस्तक्षेप किया और बाद में महिलाओं को बैठने की अनुमति दी, लेकिन मीडिया और सामाजिक संगठनों ने इसे लिंग-भेदभाव का उदाहरण बताते हुए कड़ी आलोचना की।कई पत्रकार संगठनों ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस तरह का व्यवहार “अस्वीकार्य” है। वहीं, मुत्ताकी ने सफाई देते हुए कहा— “हर देश की अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज होते हैं, जिनका सम्मान किया जाना चाहिए।” विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना इस बात को दर्शाती है कि तालिबान की महिलाओं को लेकर कठोर नीतियों की झलक भारत में भी देखने को मिली, जो भारत की समानता और स्वतंत्रता की भावना के विपरीत है।