यथास्थिति से लड़ना ही सत्याग्रह है, और सत्याग्रह के लिए गांधी और लोहिया का मार्ग ही सर्वोत्तम है।” यह बात विदुषी डॉ. अनुराधा बनर्जी ने कही। वह पूर्व मंत्री शतरुद्र प्रकाश की दूसरी पुस्तक ‘शाश्वत चुनौतियां’ पर आयोजित परिचर्चा में अध्यक्षीय संबोधन दे रही थीं। कार्यक्रम का आयोजन सिगरा-महमूरगंज मार्ग स्थित होटल सरीन में किया गया।डॉ. अनुराधा बनर्जी ने कहा कि “यथास्थिति से संघर्ष का अर्थ हिंसक होना नहीं है। अहिंसक होकर भी हर परिवर्तन संभव है।” उन्होंने कहा कि शतरुद्र प्रकाश का संघर्ष और उसके परिणाम इस पुस्तक में समान रूप से दर्ज हैं, जो इसे विशेष बनाता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि शतरुद्र प्रकाश ने सत्याग्रह को ‘सिविल नाफरमानी’ के रूप में स्वीकार किया है, जो गांधीवादी दर्शन का सार है।
इससे पहले लेखकीय वक्तव्य में शतरुद्र प्रकाश ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन के कई प्रसंग साझा किए — वर्ष 1971 में बीएचयू से बेकसूर निष्कासन, औरंगाबाद में बैलगाड़ी पर लदे राशन के गेहूं को रोककर 49 पैसे किलो में जनता में वितरण, तथा पंडित कमलापति त्रिपाठी से मिली प्रशंसा जैसे कई प्रसंगों का उल्लेख किया।कार्यक्रम में वक्ताओं ने ‘शाश्वत चुनौतियां’ में उल्लिखित तथ्यों को सत्यापित करते हुए शतरुद्र प्रकाश के दीर्घ सामाजिक संघर्ष को रेखांकित किया। प्रो. उदित नारायण चौबे और प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने दशाश्वमेध और सिगरा पुलिस चौकी से जुड़े पुराने किस्से साझा किए।अंजना प्रकाश ने कहा कि “थोड़े से लाभ के लिए अपने विचारों से समझौता करना समाज के लिए संकट को आमंत्रित करने जैसा है। नई पीढ़ी को अपनी विरासत का संरक्षण करना चाहिए।”

