जल का संरक्षण मानव सभ्यता के विकास काल से ही होता आ रहा है। विश्व की अधिकांश सभ्यताएं जल संसाधनों के पास विकसित हुई और यह धार्मिक अनुष्ठानों एवं जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा रही हैं।” यह बातें केंद्रीय विश्वविद्यालय, झारखंड, रांची के प्रो. जयप्रकाश लाल ने कही।वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सामाजिक विज्ञान संकाय, इतिहास विभाग द्वारा वैदिक विज्ञान केंद्र में आयोजित ‘विश्व संस्कृति में जल संरक्षण : एक विमर्श’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी और पुरातन छात्र सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।प्रो. जयप्रकाश लाल ने कहा कि आज कुंए और तालाब तेजी से खत्म हो रहे हैं, और यह चिंता का विषय है। उन्होंने चेताया कि “संभावना है कि अगला विश्व युद्ध जल के लिए लड़ा जाए।” उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में चट्टानों को काटकर जलाशय बनाने, कृषि, यातायात और कर्मकांडों में जल संरक्षण के अनेक प्रमाण मिलते हैं।विशिष्ट अतिथि प्रो. शांति स्वरूप सिन्हा (कला इतिहास विभाग, दृश्य कला संकाय, बीएचयू) ने कहा कि जल पंचतत्व में विशेष महत्व रखता है — यह जीवन का प्राण है।
उन्होंने कहा, “विज्ञान की असीम प्रगति के बावजूद जल का निर्माण नहीं किया जा सकता। हमारी संस्कृति में जल से जुड़ा हर त्योहार हमारे पर्यावरणीय संतुलन की भावना को दर्शाता है।”मुख्य वक्ता प्रो. जयराम सिंह (भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, शिमला के पूर्व प्राचार्य) ने कहा कि मानव सभ्यता और संस्कृति का उद्गम नदियों और जल स्रोतों के पास हुआ है। “राम, कृष्ण और ऋषि-मुनियों का जीवन जल से जुड़ा रहा है। जल संरक्षण न केवल वर्तमान बल्कि आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।”कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. अशोक कुमार उपाध्याय, संकाय प्रमुख (सामाजिक विज्ञान संकाय) ने की। अतिथियों का स्वागत प्रो. घनश्याम, विभागाध्यक्ष (इतिहास विभाग) ने किया, जबकि डॉ. सत्यपाल यादव ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। संचालन कार्यक्रम संयोजक डॉ. अशोक कुमार सोनकर ने किया।दूसरे सत्र में पुरातन छात्र सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता प्रो. पूनम पांडेय ने की। इस अवसर पर डॉ. सीमा मिश्रा, डॉ. श्रेया पाठक, प्रो. ममता भटनागर, डॉ. अभय कुमार, डॉ. तारिक कलाम, डॉ. शशिकांत यादव, डॉ. सुरेंद्र सिंह, अमित राय, ब्रह्मानंद राय सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी और छात्र

