बीएचयू इतिहास विभाग में प्रवेश अनियमितता और जातिगत भेदभाव के आरोप, पीएचडी शोधार्थियों का लगातार धरना जारी

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) एक बार फिर छात्र आंदोलन को लेकर चर्चा में है। इस बार इतिहास विभाग के पीएचडी शोधार्थियों ने कथित प्रवेश अनियमितताओं, जातिगत भेदभाव और शैक्षणिक नुकसान का आरोप लगाते हुए आंदोलन छेड़ दिया है। कड़ाके की ठंड के बावजूद 13 पीएचडी शोध छात्र-छात्राएं पिछले तीन दिनों से सेंट्रल पीएचडी छात्रों के बैनर तले धरने पर बैठे हैं, लेकिन अब तक विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई ठोस समाधान सामने नहीं आया है।धरनारत छात्रों का कहना है कि वे शैक्षणिक सत्र 2024–25 के इतिहास विभाग के पीएचडी शोधार्थी हैं, जिनका चयन RET (Research Entrance Test) श्रेणी के अंतर्गत हुआ था। सभी छात्रों ने 23 मार्च 2025 को मुख्य परिसर (DMC) में प्रवेश के लिए निर्धारित शुल्क भी जमा किया था। इसके बावजूद करीब सात माह बाद 25 अक्टूबर 2025 को जारी प्रवेश सूची में गंभीर अनियमितताएं सामने आईं।

छात्रों के अनुसार इतिहास विभाग में कुल 43 सीटें थीं, जिनमें 15 RET Exempted और 28 RET सीटें शामिल थीं। RET की 28 सीटों में से 13 छात्रों को संबद्ध (एफिलिएटेड) कॉलेजों में भेज दिया गया, जबकि 15 छात्रों को मुख्य परिसर (DMC) में रखा गया। जिन 13 छात्रों को एफिलिएटेड कॉलेजों में भेजा गया, वे सभी आरक्षित वर्ग से हैं—जिसमें 6 OBC, 4 SC, 2 ST और 1 दिव्यांग (PC) श्रेणी के छात्र शामिल हैं। वहीं DMC में रखे गए छात्रों में अधिकांश सामान्य वर्ग के बताए जा रहे हैं।छात्रों ने इसे स्पष्ट जातिगत भेदभाव बताते हुए विरोध जताया। इस संबंध में उन्होंने 27 अक्टूबर 2025 को विभागाध्यक्ष, परीक्षा नियंत्रक, उप-कुलसचिव, कुलसचिव और संयुक्त SC/ST-OBC प्रकोष्ठ को लिखित अभ्यावेदन सौंपा। इसके बाद 29 अक्टूबर को सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन और कुलपति को भी आवेदन व ई-मेल के माध्यम से अवगत कराया गया।मामले की गंभीरता को देखते हुए कुलपति द्वारा लोकपाल की नियुक्ति की गई, जिन्होंने समाधान के लिए छात्रों से कंसेंट फॉर्म भरवाया। छात्रों ने यह फॉर्म 17 नवंबर 2025 को विधिवत जमा कर दिया, लेकिन इसके बावजूद 20 दिसंबर 2025 को विभाग द्वारा फिर वही सूची जारी कर दी गई, जिसमें उन्हीं 13 आरक्षित वर्ग के छात्रों को संबद्ध कॉलेजों में ही रखा गया।

धरनारत छात्रों का कहना है कि सामाजिक विज्ञान संकाय के अन्य विभागों में कंसेंट के आधार पर छात्रों को DMC में रखा गया, लेकिन इतिहास विभाग ने उनके मामले में इस प्रक्रिया को लागू नहीं किया। इसके बाद छात्रों ने दोबारा छात्र कल्याण अधिष्ठाता (DSW) और कुलपति को आवेदन दिया, परंतु कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।छात्रों का आरोप है कि बीते 10 महीनों से वे मानसिक उत्पीड़न, जातिगत भेदभाव और गंभीर शैक्षणिक क्षति झेल रहे हैं। विवश होकर उन्होंने 22 दिसंबर 2025 से धरना आंदोलन शुरू किया है।छात्रों की प्रमुख मांगेंजिन शोधार्थियों ने DMC में शुल्क जमा किया है, उन्हें मुख्य परिसर में ही रखा जाए।10 माह बाद किया गया एफिलिएटेड कॉलेजों में स्थानांतरण तत्काल निरस्त किया जाए।मांगों के समाधान तक प्रवेश प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगाई जाए।फिलहाल छात्रों का धरना जारी है। विश्वविद्यालय प्रशासन की चुप्पी से छात्रों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। यदि शीघ्र समाधान नहीं निकला, तो आंदोलन और तेज होने की संभावना जताई जा रही है।

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