मनरेगा कानून में प्रस्तावित बदलाव के विरोध में शास्त्री घाट पर जनसभा, मजदूरों ने किया जोरदार प्रदर्शन

मनरेगा कानून में प्रस्तावित बदलाव के विरोध में  साझा संस्कृति मंच के नेतृत्व में शास्त्री घाट, वरुणापुल कचहरी पर जनसभा और विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया। जनसभा में मजदूर यूनियनों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से आए मजदूर, किसान, महिलाएं, मेहनतकश जनता और शहर के विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में शामिल हुए।सभा के दौरान केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा का नाम बदलकर उसके अधिकार-आधारित स्वरूप को समाप्त करने वाले प्रस्तावित विधेयक के खिलाफ मजदूर-विरोधी बिल की प्रतियां जलाकर कड़ा विरोध दर्ज किया गया। वक्ताओं ने इसे ग्रामीण और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला बताया।जनसभा के बाद मजदूरों, किसानों और महिलाओं ने रैली निकालते हुए जिला मुख्यालय तक मार्च किया और राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी वाराणसी के माध्यम से सौंपा।

सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि वर्षों के संघर्ष के बाद बना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा-2005) केवल एक योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण गरीबों का कानूनी और संवैधानिक अधिकार है। इसे कमजोर या समाप्त करने का प्रयास ग्रामीण भारत को गहरे संकट में धकेल देगा। वक्ताओं ने याद दिलाया कि कोविड-19 के कठिन दौर में मनरेगा के तहत करोड़ों व्यक्ति-दिवस का रोजगार मिला, जिससे लाखों परिवार भुखमरी से बच सके।वक्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित VB-G RAM G बिल मनरेगा की मूल भावना को पूरी तरह बदल देता है। जहां मनरेगा मांग के अनुसार काम की गारंटी देता है, वहीं नया कानून सीमित बजट और केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोजगार को निर्भर बना देता है। इससे सार्वभौमिक रोजगार गारंटी एक रहम-आधारित योजना में बदल जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि 26 करोड़ से अधिक पंजीकृत मजदूरों को प्रभावित करने वाला यह बिल बिना मजदूर संगठनों, ग्राम सभाओं और राज्य सरकारों से सार्थक संवाद के लाया गया है, जो संविधान की भावना और 73वें संविधान संशोधन के खिलाफ है।

ज्ञापन में प्रमुख मांगें रखी गईं, जिनमें महात्मा गांधी का नाम मनरेगा कानून में यथावत रखने, नए विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजने, अधिसूचना के जरिए काम सीमित करने की व्यवस्था समाप्त करने, खेती के मौसम में 60 दिन के ब्लैकआउट पीरियड को खत्म करने, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण अनिवार्य न करने, मजदूरी का बोझ राज्यों पर न डालने और पंचायतों की स्वायत्तता बहाल करने की मांग शामिल रही।प्रदर्शन के दौरान प्लेकार्ड और तख्तियों पर “मनरेगा से गांधी का नाम नहीं हटेगा”, “रोजगार गारंटी लागू करो”, “मनरेगा का बजट बढ़ाओ”, “श्रम कानूनों में बदलाव बंद करो”, “किसान-मजदूर विरोधी फैसले वापस लो” जैसे नारे लिखे हुए दिखाई दिए।इस जनसभा और मार्च में आशा राय, अनिता, सोनी, मनीषा, रेनू, सरोज, वंदना, पूजा, झुला रामजनम, अफलातून, डॉ. आनंद प्रकाश तिवारी, नंदलाल मास्टर, रंजू, रामधीरज, एकता, रवि, संध्या सिंह, धनंजय, रौशन, शाश्वत, जितेंद्र, ईश्वर चंद्र, अर्पित, दिवाकर, राजेश, गौरव, सुमन, मुस्तफा, नीति पंचमुखी सहित सैकड़ों मेहनतकश लोग शामिल रहे।प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि इस जन-विरोधी विधेयक को वापस नहीं लिया गया, तो आंदोलन को और व्यापक रूप दिया जाएगा।



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