दिवाली पर काशी में बढ़ी गणेश-लक्ष्मी मूर्तियों की मांग, मूर्तिकारों के हाथों में छिपा है परंपरा और पर्यावरण का संगम

जैसे-जैसे दिवाली का पर्व नजदीक आ रहा है, धर्मनगरी काशी में गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों की मांग में जबरदस्त इजाफा देखने को मिल रहा है। दिवाली के शुभ अवसर पर इन मूर्तियों की पूजा का विशेष महत्व होता है, जिसके चलते शहर के बाजारों में खरीदारी का दौर तेज हो गया है।इस समय बाजार में सबसे ज्यादा मांग पारंपरिक ‘तीली वाली मूर्तियों’ की है। यह वही मूर्तियाँ हैं जिनका उपयोग बनारस की सदियों पुरानी पूजा-पद्धति में किया जाता रहा है। स्थानीय लोग मानते हैं कि इन मूर्तियों के बिना दिवाली की पूजा अधूरी है।“हम लोग गंगा जी की मिट्टी से मूर्तियाँ बनाते हैं। पूरी तरह प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं ताकि ये पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित रहें और पूजा में धार्मिक पवित्रता बनी रहे।”“इस बार पिछले साल के मुकाबले दोगुना ऑर्डर मिला है। 

लोग परंपरागत मूर्तियों को ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं, क्योंकि ये बनारस की पहचान हैं।”इन मूर्तियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें गंगा की पवित्र मिट्टी से तैयार किया जाता है और प्राकृतिक रंगों से सजाया जाता है। यही वजह है कि ये मूर्तियाँ ईको-फ्रेंडली होने के साथ धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र मानी जाती हैं।“हमारे पास दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और मध्य प्रदेश से भी ऑर्डर आ रहे हैं। कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं ताकि दिवाली से पहले हर जगह मूर्तियाँ पहुंच जाएं।”बनारस की इन पारंपरिक मूर्तियों ने अब पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना ली है। जैसे-जैसे त्योहार करीब आ रहा है, काशी के कारीगरों की व्यस्तता और चमक दोनों बढ़ती जा रही हैं।



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