काशी हिंदू विश्वविद्यालय में गठिया रोग को लेकर भारत के विभिन्न राज्यों से आए डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने विचार-विमर्श किया। गठिया एक उपेक्षित किन्तु अत्यंत सामान्य रोग है, जिसमें भारत में लाखों लोग चुपचाप दर्द से पीड़ित हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है।विशेषज्ञों ने बताया कि अब तक गठिया के नियंत्रण हेतु कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रारंभ नहीं किया गया है। समाज और चिकित्सा समुदाय में जागरूकता और ज्ञानवृद्धि के लिए देशभर में बैठकों की एक श्रृंखला आयोजित की जा रही है। COPCORD India के आंकड़े हाल ही में दिल्ली 27 सितम्बर 2025 और पुणे 4 अगस्त 2025 में प्रस्तुत किए गए। आगामी बैठकों का आयोजन गोरखपुर, अहमदाबाद, कोझिकोड, बेंगलुरु, चेन्नई और कोलकाता में किया जाएगा।विश्व गठिया दिवस 12 अक्टूबर 2025 को मनाया गया, जिसका उद्देश्य विश्वभर में गठिया और विकलांगता से पीड़ित रोगियों की पीड़ा को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना है। दिल्ली, वाराणसी और गोरखपुर में आयोजित COPCORD बैठकें इसी उद्देश्य के अनुरूप आयोजित की जा रही हैं।केंद्रीय आयुष अनुसंधान परिषद CCRAS ने राज्य स्तरीय समन्वय और एकीकृत दृष्टिकोण के लिए राज्य स्तरीय संयोजक नियुक्त किए हैं। डॉ. संजय कुमार सिंह, सहायक निदेशक आयुष, लखनऊ को वाराणसी एवं गोरखपुर की बैठकों का समन्वय करने की जिम्मेदारी दी गई है।अध्ययन एवं सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष:भारत में लगभग 19.53 करोड़ लोग वर्तमान या पिछले तीन महीनों में गठिया से पीड़ित हैं, जिनमें 65% महिलाएँ हैं।लगभग 42.2 लाख लोग रूमेटाइड आर्थराइटिस RA से ग्रसित हैं, जिनमें 35.1 लाख महिलाएँ हैं।11.7 लाख महिलाएँ प्रजनन आयु वर्ग में रूमेटाइड आर्थराइटिस से पीड़ित हैं, जो विश्व स्तर पर उच्च अनुपात है।5.44 करोड़ लोग ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA) से पीड़ित पाए गए, जो मध्य आयु और वृद्धावस्था में घुटनों और रीढ़ को प्रभावित करता है।
1.72 करोड़ लोगों में गैर-विशिष्ट दर्द जैसे एड़ी, पिंडली, पीठ और कंधे में पाया गया।विशेषज्ञों ने कहा कि गठिया का बोझ ग्रामीण भारत में अधिक है। जोखिम कारक में आयु, महिला लिंग, अल्प साक्षरता, मांसाहारी आहार, पुरानी बीमारियाँ और तंबाकू सेवन शामिल हैं। जीवनशैली सुधार, उचित परामर्श और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से इन जोखिमों को नियंत्रित किया जा सकता है।डॉ. अरविंद चोपड़ा ने जोर देकर कहा कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति और आयुष प्रणालियों (विशेषकर आयुर्वेद का सामूहिक और समन्वित दृष्टिकोण अपनाकर ही गठिया और संधिवात जन्य दर्द की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु एक प्रभावी राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है।