वाराणसी में नवरात्र और दशहरा के बाद लक्खा मेले के तहत आयोजित नाटी इमली का ऐतिहासिक भरत मिलाप उत्सव इस बार भारी बारिश के बीच भी धूमधाम से संपन्न हुआ। चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित इस आयोजन को देखने के लिए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।
माना जाता है कि लगभग 450 वर्ष पूर्व तुलसीदास जी के समकालीन संत मेघा भगत को स्वप्न में तुलसीदास जी के दर्शन हुए थे। उसी प्रेरणा से उन्होंने भरत मिलाप की इस लीला की शुरुआत की, जो आज काशी के सबसे बड़े आयोजनों में गिनी जाती है। इस उत्सव की खास परंपरा के अनुसार, प्रभु श्रीराम का रथ यादव बंधुओं द्वारा विशेष वेशभूषा—पगड़ी और धोती पहनकर खींचा जाता है। इसे वे पीढ़ियों से सेवा और सौभाग्य मानते हैं।
शाम को करीब 4:40 बजे जब अस्त होते सूर्य की किरणें भरत मिलाप मैदान के तय स्थान पर पड़ीं, तो माहौल कुछ क्षण के लिए थम गया। इसके बाद अनुज भरत और शत्रुघ्न भूमि पर लेटकर स्वागत करने लगे, वहीं राम और लक्ष्मण उनकी ओर दौड़े। चारों भाइयों के इस दिव्य मिलन को देखकर मैदान “जय श्रीराम” के नारों से गूंज उठा।
इसके बाद परंपरा अनुसार प्रभु का रथ यादव समाज के लोग कंधों पर उठाकर पूरे मैदान में घुमाते हैं। भारी बारिश के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। भक्तों का कहना था कि इस एक क्षण को देखने मात्र से ऐसा लगता है मानो स्वयं भगवान के साक्षात दर्शन हो गए हों। नाटी इमली का भरत मिलाप उत्सव आज भी वाराणसी की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान बना हुआ है, जिसे देखने हर साल लाखों लोग उमड़ते हैं।



